जगदलपुर, 10 फ़रवरी- लाला जगदलपुरी जिला ग्रंथालय जगदलपुर में प्रख्यात साहित्यकार गुलशेर खान शानी की रचनाओं पर विचार संगोष्ठी जिला प्रशासन की ओर से रखा गया था। जिसमें वक्ताओं ने शानी के साथ बिताये अपने संस्मरणों को श्रोताओं के साथ साझा किया। बता दें जिला शिक्षा अधिकारी भारती प्रधान जी के नेतृत्व में कार्यक्रम का आयोजन हुआ।
शाम 4 बजे से शुरू हुए संगोष्ठी में मुख्य अतिथि डॉ. बी. एल. झा, प्रमुख वक्ता प्रोफेसर डॉक्टर योगेंद्र मोतीवाला, कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में पद्मश्री धर्मपाल सैनी उपस्थित थे।
वक्ताओं में एम ए रहीम ने बड़ी संवेदना के साथ शानी के साथ बिताये अनुभवों को और उनके आंरभिक दिनों के संघर्षों का उल्लेख किया। वहीं मदन आचार्य ने शानी जी की कहानियों पर खासकर “चील”, “युद्ध”, “कर्फ़्यू” और “रहीम चाचा” पर विस्तृत चर्चा की। शशांक श्रीधर शेंडे ने बताया कि बहुत कम लेखक ऐसे होते हैं जो आपके दिल पर दस्तक दे पाते हैं पर शानी जी की बात निराली है। उन्होंने बस्तर में कुछ वर्षों की सेवा करके बस्तर के प्रत्येक साहित्यप्रेमी के मन में घर बना लिया है। डॉ. बी.एल. झा ने अपने वक्तव्य में भी जिक्र किया कि वह शानी जी को 1 वर्ष पढ़ा चुके हैं, वे उनके अध्यापक रहे हैं और शानी जी समय-समय पर उन से लगातार संपर्क में बने रहे।
डॉ. योगेंद्र मोतीवाला ने शानी के समग्र साहित्य पर अपने विचार रखे। बता दें कि प्रोफेसर डॉक्टर योगेंद्र मोतीवाला ने शानी पर शोध किया है। उसी पर उन्होंने पीएचडी की है। उन्होनें शानी की रचनाओं में उपस्थित निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम समाज की दयनीय स्थिति उनके पात्र के बारे में और बस्तर के आदिवासी, हाट-बजार को लेकर लिखी गई रचनाओं के विषय में बताया।
उर्मिला आचार्य ने शानी की कविता “जैबुनिंसा”, तीन कविताएँ से एक कविता का पाठ किया और बताया कि साम्प्रदायिक सदभाव को लेकर ऐसी कविताएं आज भी कारगर हैं। इस अवसर पर मंचासीन पद्मश्री सैनी जी ने भी अपने विचार रखे।
वहीं शशांक शेंडे, अवधकिशोर शर्मा, संजय देवांगन ने भी उनके साहित्य की चर्चा की। डॉ सुषमा झा ने बताया कि शानी एक महान साहित्यकार व कहानीकार थे। उनकी कहानियां बस्तर के ग्रामीण परिवेश पर आधारित होती थीं। लालाजी पर प्रकाशित स्मारिका और प्रमाण पत्र उपस्थित साहित्य प्रेमियों को प्रदान किया। कार्यक्रम में सनत जैन, सुरेश विश्वकर्मा, शैल दुबे, अनिता राज आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन विधुशेखर झा और पूर्णिमा सरोज ने किया। ग्रंथालय में बीके डोंगरे, यशायाह वली, विधु शेखर झा, मोहम्मद हुसैन खान, शोएब अंसारी और सुभाष श्रीवास्तव ने पूरी व्यवस्था और प्रबंधन का कार्य किया।
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