Blog

शानी को याद करते हुए

शानी का आज न जन्मदिवस है और न ही उनकी पुण्यतिथि, पर पिछले कुछ दिनों से उनका ‘काला जल’ जैसा खूबसूरत उपन्यास और ‘युद्ध’ जैसी खूबसूरत कहानी, मध्यप्रदेश साहित्य परिषद को स्थापित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद के शुरुआती दौर में ही एक महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका ‘साक्षात्कार’ निकालने का उनका साहसिक […]

Read more...

स्मृति में

जी.के.शानी 16 मई, 1933- 10 फरवरी, 1995 ये कुछ शब्द एक ऐसे व्यक्ति के बारे में लिखे गए हैं जो भारत में मेरा सबसे अज़ीज़ दोस्त था और पूरी दुनिया में मेरे दो या तीन सबसे क़रीबी दोस्तों में से एक था। जगदलपुर में जन्मे गुलशेर ख़ान ने, जो उस समय मध्य भारत की एक […]

Read more...

गुलशेर खान “शानी”: मुलाक़ात की कहानी

विनोद दास यह वह समय था जब दिल्ली के सांस्कृतिक ह्रदय मंडी हाउस स्थित रवीन्द्र भवन के साहित्य अकादमी परिसर में हिन्दी साहित्य की दो विभूतियाँ साहित्य की दो आँखों की तरह एक दूसरे के पड़ोस में बैठती थीं। एक थे हमारे समय के सबसे विवादास्पद और प्रखर कवि -अनुवादक विष्णु खरे और दूसरे कस्बाई […]

Read more...

शानी जी की 88वीं जयंती पर चंचल जी का लेख

आज यानी 16 मई 2021 तक शानी जी जिंदा रहते तो आज की सांझ मयूर विहार की एक छत गुलजार रहती और हम शानी जी को 88 वें जन्मदिन की मुबारकबाद देने उस मकान की रसोई में खड़ी सलमा भाभी से दरयाफ्त कर होते – कबाब कुछ तो बचेगा? सलमा भाभी बोलती कम थी , […]

Read more...

जैसी ज़िन्दगी देखी वैसा लिखना

1976-77 में जब में युवा ही था, लिखना शुरू ही किया था, शानी जी से भेंट हुई। वे मध्य प्रदेश शासन साहित्य परिषद के सचिव थे और वे तब तक इतना अधिक नाम कमा चुके थे कि काला जल का पर्याय उन्हें माना जाता था,  बस्तर का उन्हें पर्याय माना जाता था। उनसे मिलने पर […]

Read more...

चांद और काला जल

  अस्सलाम-ओ-अलेकुम…मैं हूं आरिफ़ फ़रुख़ी…..मेरी तहरीरों का सिलसिला तालाबंदी का रोज़नामचा जारी है। इस उनवान के तहत जो तहरीर मैं पेश कर रहा हूं उसका नाम है वबा के दिनों में चांद और काला जल। कल चौदहवीं की रात थी..पूरे चांद को देखने के लिये घर से बाहर नहीं निकलना पड़ा। सामने वाले मिर्ज़ा साहब […]

Read more...

शानी की मानी : ज़ाहिद ख़ान

शानी के मानी यूँ तो दुश्मन होता है और गोयाकि ये तख़ल्लुस का रिवाज ज्यादातर शायरों में होता है। लेकिन शानी न तो किसी के दुश्मन हो सकते थे और न ही वे शायर थे। हाँ, अलबत्ता उनके लेखन में शायरों सी भावुकता और काव्यत्मकता ज़रुर देखने को मिलती। शानी अपने लेखन में जो माहौल […]

Read more...

मेरे लिए दुष्यंत

मेरे लिए दुष्यन्त कुमार रात आधी और कमरे में अँधेरा था। उस ड्राइंगरूम-कम-स्टडी-कम-बेडरूम में बीचों-बीच दो चारपाइयाँ बिछी हुई थीं और हम दोनों अपनी-अपनी चारपाइयों पर लेटे सोने की कोशिश या उसका नाटक कर रहे थे। थोड़ी देर पहले हम दोनों बाहर से लड़कर आए थे और रास्ते में हमने एक-दूसरे से बिल्कुल बात नहीं […]

Read more...

शानी एक मुस्लिम हिन्दी लेखक

हज हमारी गोमती तीर, जहाँ बसे पीतांबर पीर वाह–वाह किया खूब गावता है हरि का नाम मेरे मन भावता है । नारद–सारद करे खवासी पास बैठी बीवी कमला दासी कंठे माला, जिह्वा राम सहस नाम ले–ले करूँ सलाम । कहत ‘कबीर’ राम गुन गाऊँ । हिन्दू तुरक दोऊ समझाऊँ ॥ हर चीज“मरणोपरांत बदल जाती है […]

Read more...

Hello world!

Welcome to WordPress. This is your first post. Edit or delete it, then start writing!

Read more...