अल्पसंख्यकों की भारतीय अस्मिता के सवाल पर शानी और राही मासूम रज़ा दोनों बहुत ही गुस्से से जवाब देते हैं। राही ‘आधा गाँव’ की भूमिका में लिखते हैं कि “जनसंघ का कहना है कि मुसलमान यहाँ के नहीं हैं । मेरी क्या मजाल की मैं झुठलाऊँ । मगर यह कहना ही पड़ता है कि मैं गाजीपुर का हूँ । गंगौली से मेरा अटूट संबंध है । वह एक गाँव ही नहीं । वह मेरा घर भी है ।…और मैं किसी को यह हक नहीं देता कि वह मुझसे यह कहे, राही! तुम गंगौली के नहीं हो ।” (आधा गाँव-रही मासूम रज़ा पृ. 303)
शानी कहते हैं कि ”मैं भी नहीं मानता कि मेरे पुरखे कहीं ईरान-तूरान से आये होंगे, वे वहाँ बस्तर के जंगलों में कहाँ ऐसी तैसी कराने पहुँचते? हो सकता है वे हिंदू ही रहे हों । मगर तीन पीढ़ियों से मैं मुसलमान हूँ और वही बने रहना चाहता हूँ । यह मुल्क, यह ज़बान, यह राष्ट्र सिर्फ उनके बाप का नहीं, मेरा भी उतना ही है जितना उनका। मैं उनकी शर्तों और कृपा पर यहाँ का नागरिक नहीं हूँ। क्यों ख़त्म कर दूँ मैं अपनी आइडैंटिटी…? सिर्फ इसलिए कि मैं अल्संख्यक हूँ…मुझसे क्यों मांग की जाती है कि मैं हर बार अपने को साबित करूँ जो वो चाहते हैं? (शानी, आदमी और अदीब पृ. 14)
2 Responses
March 18th, 2021 at 6:48 pm
Thіs post is reɑlly a fastidiоus one it helpѕ new web visitors, who are wishing for blogging.
My web site: sarkari-job
April 15th, 2021 at 12:38 am
But how much you can afford to get rid of could be the issue which the participant
must take into account.
Leave a Comment