शानी को मुकम्मल स्थान नहीं मिला: साहित्यकार

शानी को मुकम्मल स्थान नहीं मिला: साहित्यकार

नई दिल्ली: हिन्दी के नामचीन कथाकार गुलशेर खान शानी की जयंती पर मंगलवार (16 मई) यहां साहित्यकारों ने कहा कि उन्हें हिन्दी में वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। शानी फाउंडेशन की ओर से 16 मई को ‘शानी का साहित्य और भारतीय समाज की तस्वीर’ विषय पर परिसंवाद का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल में किया गया। इस परिसंवाद की अध्यक्षता प्रोफेसर शमीम हनफी ने की।

हिंदी के मशहूर कवि और समालोचक अशोक वाजपेयी ने शानी की जीवनी लिखे जाने की जरूरत बताई। उनका कहना था कि शानी हाशिये पर पड़े लोगों के कथाकार थे, लेकिन उन्हें वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। उन्होंने शानी को अपने समय से आगे का लेखक बताते हुए कहा कि वह अपने समय की चीजों को बारीकी से समझते थे, इसलिए आगे के समय की बात लिख पाए।

लेखिका शीबा असलम फेहमी ने कहा कि शानी के साहित्य में अरबी फारसी की मिलावट नहीं होने के बाद भी लेखकों ने उन्हें हिंदी साहित्य में मुकम्मल जगह नहीं दी। शानी का जन्म 16 मई 1933 को छत्तीसगढ के जगदलपुर में हुआ था। वह साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ और ‘साक्षात्कार’ के संपादक रहे। शानी ने भारतीय भाषाओं के अलावा रूसी, लिथुवानी, चेक और अंग्रेजी साहित्य का अनुवाद किया। उनका 10 फरवरी 1995 को निधन हो गया। शानी ने अपना बेहतरीन रचनाकर्म जगदलपुर में किया।

इस फाउंडेशन को बनाने वालों में से एक फ़ीरोज़ शानी ने कहा कि यह फाउंडेशन दूरदराज की साहित्यिक प्रतिभाओं को खोजकर उसे तराशने का काम करेगी।

यह ख़बर जनादेश न्यूज़ वेबसाइट पर 18 मई 2017 को प्रकाशित हुई।

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