स्त्री के सम्मान में पढ़ा गया फातिहा:‘काला जल’
June 15, 2017
‘‘औरत की खेत-खलिहान और मवेशियों की तरह हिफाजत होती थी (है)। मालिक और मल्कियत के लिए अलग-अलग उसूले-जिन्दगी बन गए। मर्द पालनहार पति और ख़ुदाए-मज़ाजी। औरत के फरायज़ मर्द की ख़िदमत कि रोज़ी-रोटी की खातिर बराहे-रास्त हवादिसे-ज़माना का मुकाबला नहीं करना पड़ता था जब तक मर्द को खुश करती। ज्यादा से ज्यादा सिपाही पैदा करती। […]
हिन्दी साहित्य ने मुसलमानों को अनदेखा क्यों किया?
June 11, 2017
नामवर सिंह ने कभी कहा था कि हिंदी साहित्य से मुसलमान पात्र गायब हो रहे हैं। १९९० में शानी ने इसी प्रश्न को एक बातचीत के दौरान और प्रखर ढंग से पेश किया कि हिंदी साहित्य में मुसलमान पात्र थे ही कहा जो गायब होंगे। शानी का तर्क था कि तेलुगु,असमिया और बंगला के साहित्यकार […]
सार्थक हस्तक्षेप करता वांग्मय का शानी अंक
June 11, 2017
रमाकान्त राय लघु पत्रिकायें निकालना बेहद चुनौती पूर्ण काम है और उनकी निरन्तरता बनाये रखना और भी कठिन। ऐसे में अलीगढ़ से निकलने वाली लघु पत्रिका वांग्मय् का निरन्तर प्रकाशित होना न सिर्फ हिन्दी के उजवल भविष्य की ओर संकेत करता है अपितु सम्पादक डॉक्टर एम फीरोज अहमद के जीवट व्यक्तित्व का परिचायक भी है। […]