‘हिन्दी के मुस्लिम कथाकार ‘शानी’ के संदर्भ में निवेदिता का एक आलेख

ये किताब जब मेरे हाथ में आयी तो मैं सोच रही थी कि जिन्दगी कितनी मुक्तलिफ होती है। जब हम नहीं होते तो हमारे जीवन के टुकड़े अलग अलग शक्लों में होती है। शानी के बारे में पढ़ना वैसा ही है जैसे दुनिया के अनुभवों से अनुगुंजित होना। इस किताब में शानी के जीवन और उनके लेखन से परिचित होने का मौका मिला। साहित्य में शानी की अलग पहचान है। वे अपने आस-पास की जिन्दगी को लेकर जो रचते हैं उसमें सीधी-सादी सच्चाई के अंदर एक बेचैन सच है जो उनके उपन्यास में पात्रों के माध्यम से खुलती है। उनको पढ़ते हुए एक बड़े कवि रुजेविज की बात याद आती है उन्होंने कहा था मेरी कविता खिड़की के अंदर जड़ी हुई खिड़की खोलती है। शानी का लेखन वैसा ही है पाठक जब प्रवेश करते हैं तो गहन अंधेरा मिलता है पर जैसे-जैसे आगे बढ़ता है उसे खिड़की के अंदर एक और खिड़की नज़र आने लगती है।

इस किताब में शानी के जीवन के कई पक्ष खुलते हैं। डॉ. धनंजय वर्मा के आलेख शानी की जीवन रचना यात्रा जहां हमें शानी की जिन्दगी से परिचित होने का मौका देती है वही नासिरा शर्मा के लेख ये जाहिर करते हैं शानी के जिन्दगी के कई रंग थे। उनके अफसाने सतहों के नीचें झांकने की कोशिश करती है। आपको लगेगा कि आप रंगों की परतों में दाखिल हुए हैं।

शानी-याने गुलशेर खां। जिनका जन्म 16 मई 1933 को हुआ। शानी खुद एक जगह लिखते हैं-जो व्यक्ति सांस्कृतिक या किसी भी प्रकार की कला संबंधी परंपरा से शून्य, बंजर-सी धरती बस्तर में जन्में, घोर असाहित्यक घर और वातावरण में पले-बढ़े, बाहर का माहौल जिसे एक अर्से तक छू नहीं पाये एक दिन वह देखे कि साहित्य उसकी नियती बन गया है। उसी बंजर भूमि पर शानी ने जो रचा वह साहित्य की उर्वर जमीन बन गयी। शानी ने हर श्रेणी, हर वर्ग, हर भाषा के पाठकों के बीच अपनी जगह बनायी है। यह किताब शानी का आईना है। जो उनके द्वारा रचे गए सम्पूर्ण साहित्य और कलाओं को एक सूत्र में पिरोये रख कर, जीवन को ही नहीं, साहित्य व कलाओं को भी स्पंदित करता है।

डॉ. वर्मा लिखते हैं- मैंने शानी को देखा-एक बेचैन और बदहवास आदमी की तरह, जो अपने वर्तमान से असंतुष्ट है, अपनी प्रतिकूल परिस्थितियों से हर पल जूझ रहा है लेकिन उसकी आंखों में साहित्य को लेकर एक सपना तैर रहा है। यह किताब शानी को जानने के लिए एक मुक्कमल किताब है। जिसमें जिन्दगी अलग-अलग रंगों के साथ मिलती है। उनके उपन्यास ‘काला जल’ समाज के अन्तर्विरोध को जिस बारीकी से उभारता है कि हम आप उसे पढ़कर खुद उस समय को परख सकते हैं। उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि जिस समाज की तस्वीर उन्होंने काला जल में खींची है उसका अन्तर्विरोध और विडम्बनाएं क्या हैं? अगर आज की दुनिया में ऐसे लेखकों की सूची बनायी जाय जिनके लेखन में हमारी दुनिया नज़ ब बबबर आती है,जिसके हम हिस्सेदार हैं, जो बिल्कुल हमारी लगती है तो उसमें शानी का नाम जरूर होगा।

शानी के दोस्त उनके कातिल भी हैं दिलदार भी। शानी पर लिखते हुए नासिरा शर्मा कहती हैं-शानी को मैं सारी तल्खियों और बदकलामियों के बावजूद एक सच्चे इंसान के रूप में देखती थी। -काला जल उपन्यास पढ़ते समय जितना बोर कर रहा था। पढ़ने के बाद मेरे दिल और दिमाग में अपना सफर तय करना शुरू कर दिया। जिसकी जड़े किरदार के शक्ल में मेरे अंदर कई तरह के प्रश्न उठाने लगी कि आखिर यह कौन से मुसलमान हैं जो हमसे कुछ अलग तरह से जीते हैं और सोचते हैं? अंत में वो कहतीं हैं- काश! वह कुछ दिन और जी लेते। उन्हें इतनी जल्दी नहीं जाना चाहिए था। सही समय उनकी खरी-खोटी तल्ख अभिव्यक्तियों को सुनने का यही मौका था। शानी और पाठकों में कमाल का संबंध विकसित हुआ। उस वक्त के पाठक ही नहीं आज का पाठक भी शानी से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है। आज की तल्ख हकीक़तों से और त्रासदायी स्थितियों का खास कर मुस्लिम महिलाओं की स्थितियों का जो बयान शानी ने अपने उपन्यास एक लड़की की डायरी में की है वह अद्भूत है। डॉ. इकरार अहमद लिखते हैं-स्त्री जीवन के प्रत्येक पक्ष को अपने में समेटे यह मार्मिक और संवेदनपूर्ण उपन्यास एक निजी डायरी को आधार बनाकर प्रस्तुत किया गया है। भले ही इसका शीर्षक ‘एक लड़की की डायरी’ हो पर यह प्रत्येक भारतीय गरीब मुस्लिम परिवार की लड़की की व्यथा है। डॉ. अहमद कहते हैं -यह उपन्यास स्त्री विमर्श, मुस्लिम मानस, अविवाहित जीवन की विडम्बना, बेमेल विवाह, गरीबी, अशिक्षा इत्यादि सामाजिक सरोकार का महाकाव्य है। किताब के सम्पादक डॉ. एम फ़िरोज़ खान ने शानी के जीनव के हर एक पक्ष को समेटने की कोशिश की है। नासिरा शर्मा से लेकर मधुरेश, रोहिताशव, डॉ. शिवचन्द्र प्रसाद, डॉ. तारीक असलम, डॉ. नीरु, डॉ. नग़मा जावेद, मूलचंद सोनकर, खान अहमद फा़रुख, डॉ. एम फ़िरोज़ अहमद, सागीर अशरफ, डॉ. रमाकांत राय, डॉ. अवध बिहारी पाठक, डॉ. इकरार अहमद, रेयाना परवीन, डॉ. अरुण कुमार तिवारी समेत कई साहित्यकारों ने शानी के जीवन, उनके लेखन का साहित्यिक मूल्यांकन किया है।

शानी ने अपनी शख़्सियत की छाप हर जगह छोड़ी। वे एक ऐसे साहित्यकार थे जिनका उर्दू हिन्दी दोनों में दखल था। उर्दू उनकी मादरी जु़बान थी तो हिन्दी से बेपनाह मुहब्बत। काला जल उपन्यास पढ़कर यशपाल ने उन्हें पत्र लिखा। पांच दिन पूर्व ‘काला जल’ पढ़ना आरंभ किया तो फिर अपना काम स्थगित करना पड़ा। लेकिन उसके लिए कोई असंतोश नहीं है। मुझे सम्पूर्ण रचना इतनी सुगठित-सार्थक-सप्रयोजन और सफल लगी कि आपको बधाई दिए बिना नहीं रह सकता। यह किताब शानी के संपूर्ण जीवनानुभव और समग्र कला अनुभव के रूप में आकार लेती है। जीवन और लेखन की भीतरी तहों में दाखिल होती हैं। पढ़ते हुए आप वैसी ही हरारत महसूस करेंगे जैसे लिखते वक्त लेखक ने महसूस की होगी। जिसमें कई रंग झिलमिलाते हैं, शक्लें बनती हैं और टूटती जाती हैं। रंग रेखाओं के आर-पार शानी के सारे पात्र आपसे इस तरह मिलते हैं जैसे वे आपके हमसाया हों।

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