जोखिम उठाकर भी बोलना होगा:शानी
December 22, 2018
साम्प्रदायिकता के सवाल पर असल में हम बहुत देर से विचार कर रहे हैं। हमारे यहाँ और कुछ और देशों में भी यह समस्या बहुत पहले से अस्तित्व में है। दंगे तो बहुत पहले से हो रहे हैं.कभी मेरठ में, अलीगढ़ में, कभी अहमदाबाद में, भिवंडी में.ऐसा नहीं है कि दंगे अभी होने शुरू हुए […]
रथ देवताओं-योद्धाओं के होते हैं:शानी
December 22, 2018
क्या उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के लिए कोई रथयात्रा की थी? वे तो नेहरूजी की तरह आस्तिक नहीं थे, रामपूजक थे, रामराज्य उनका आदर्श था। यही नहीं एकता, सद्भाव और साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए आखिर उन्होंने अपने को राम के नाम के साथ शहीद कर दिया था। रथ देवताओं और योद्धाओं के होते […]
शानी : जब हम वापस आएँगे
December 18, 2018
जब हम वापस आएँगे तो पहचाने न जाएँगे हो सकता है हम लौटें तुम्हारे घर के सामने छा गई हरियाली की तरह वापस आएँ हम पर तुम जान नहीं पाओगे कि उस हरियाली में हम छिटके हुए हैं ‘समकालीन भारतीय साहित्य के चवालीसवें यानी स्वसंपादित अंतिम अंक (अप्रैल-जून, 1991) के मार्मिक संपादकीय आलेख का समापन […]