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स्मृति में

जी.के.शानी 16 मई, 1933- 10 फरवरी, 1995 ये कुछ शब्द एक ऐसे व्यक्ति के बारे में लिखे गए हैं जो भारत में मेरा सबसे अज़ीज़ दोस्त था और पूरी दुनिया में मेरे दो या तीन सबसे क़रीबी दोस्तों में से एक था। जगदलपुर में जन्मे गुलशेर ख़ान ने, जो उस समय मध्य भारत की एक […]

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‘काला जल’ को इस नज़रिये से भी देखिए

ज़ाहिद ख़ान कथाकार गुलशेर ख़ाँ शानी ने अपनी बासठ साला ज़िंदगानी में बेशुमार लिखा। अनेक बेहतरीन कहानियां और उपन्यास उनकी कलम से निकले। ख़ास तौर पर उनके आत्मीय संस्मरण ‘शाल वनों का द्वीप’ का कोई जवाब नहीं। लेकिन इन सबसे अव्वल उनका कालजयी उपन्यास ‘काला जल’ है। जिसे न सिर्फ़ हिंदी के बड़े आलोचकों ने […]

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जैसी ज़िन्दगी देखी वैसा लिखना

1976-77 में जब में युवा ही था, लिखना शुरू ही किया था, शानी जी से भेंट हुई। वे मध्य प्रदेश शासन साहित्य परिषद के सचिव थे और वे तब तक इतना अधिक नाम कमा चुके थे कि काला जल का पर्याय उन्हें माना जाता था,  बस्तर का उन्हें पर्याय माना जाता था। उनसे मिलने पर […]

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कई बार मिलकर भी शानी जी से नहीं मिल सका

शीर्षक बहुत ही कन्फ्यूज़ करने वाला है। मिलकर भी नहीं मिल सकना। यह भला कैसी बात हुई? इसका उत्तर मैं क्या दूँ? क्योंकि मैं स्वयं शानीजी के संबंध में कन्फ्यूज़्ड रहा हूँ। शायद इसकी वजह मेरी और उनकी उम्र में बहुत बड़ा अंतर होना ही रहा होगा। सन् 1957 की बात है। जगदलपुर में हमारी […]

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शानी जी के जीवन के दो अनजाने पहलू

शानी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बहुत कुछ कहा जा चुका है, बहुत कुछ प्रकाशित हो चुका है, अतः उन्हीं बातों का दोहराव न करते हुए मैं मात्र उनके जीवन के दो अनजाने प्रसंगों का उल्लेख करने की इजाज़त चाहता हूँ, जो केवल यह दर्शाते हैं कि दुनिया में, इस मतलबी दुनिया में सीधे-सादे […]

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